प्यार क्या है ( WHAT IS LOVE ) ?

       प्यार एक विशेष ईश्वर द्वारा दी हुई एक विशेष अनुभूति (FEELING ) है l प्यार को एक वाक्य  में वर्णन करना कठिन है l संक्षेप में किसी दूसरे में अपना ही स्वरुप , अपनी ही भावनाएँ ,अपनी ही ख़ुशी और दुःख अनुभव हो ; जब दूसरे को खुद में अनुभव करें l  इसे ही प्यार कहते है l
       प्यार में कोई मांग और प्रतिबद्धता  ( COMMITMENT ) की आवश्यकता नहीं होती l प्यार ऐसी अनुभूति है जिसके अंदर सारे बंधन ,जाती -धर्म ,दूरी,अमीरी -गरीबी,सूंदर और सामान्य रूप  कोई मायने नहीं रखते  l प्यार करने वाले हर पल मिलें या ना मिलें ; फिर भी हर पल लगता है - जैसे वह पास ही है ,उसके सपनों में खोना अच्छा लगने लगता है ,उसकी छवि सदा ही अपने अवचेतन मन , ह्रदय में होती है और हम सदा ही अपने प्यार में खो जाना चाहते हैं l 

        प्यार एक आत्मिक अनुभूति है l प्यार में हम एक दूसरे को ह्रदय ( दिल ) से अनुभव करते हैं , दिमाग से नहीं l प्यार में कोई मांग / आवश्यकता / कोई लोभ या चाहत नहीं होती , बस होता है तो बस  एक-दूसरे में खो जाने का दिल करता है , एक-दूसरे में समर्पित होने का दिल करता है l दोनों एक दूसरे में विशेष आकर्षण महशूस  करते है ,जो समय के साथ-साथ बढ़ता ही जाता है, हम एक - दूजे में जितना घुलते जाते हैं ; उतना ही आकर्षण बढ़ता जाता है ; लगता है - जैसे हम एक-दूजे के लिए बने हैं l
प्यार , विश्वास / सच्चाई / आत्म-सम्मान / बिना लोभ के एक दूसरे की सहायता करने का गुण ; एक-दूजे की ख़ुशी में सब कुछ न्योछावर करने की अनुभूति द्वारा बढ़ता ही जाता है l 

       प्यार में शारीरिक सुख , भोग की कोई आवश्यकता नहीं होती है - एक दूजे को स्पर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं होती l प्यार ; ह्रदय से ह्रदय की आँतरिक अनुभूति है , हमारे विशेष imotions (भाव ) व् भावनाएं (Feelings) हैं l
प्यार की गहराई में जाने पर हमें लगता है जैसे जीवन कि सारी खुशियां मिल गई हैं ,एक विशेष प्रकार का ठहराव व् आत्मिक सुख का अनुभव होता है ,जैसा पहले कभी अनुभव नहीं किया था l प्यार में दोनों एक - दूजे में खो जाते हैं l विशेष दृढ इच्छाशक्ति (strong desire), आकर्षण का अनुभव होता है और हम अपने को SPEECHLESS पाते हैं I

        जो प्यार एक माँ को अपने बच्चे से होता है, हमें अपने से होता है ,बच्चे को अपनी माँ से होता है इसी तरह का प्यार ही सच्चा प्यार कहलाता है I दूसरे सारे आकर्षण हैं ;जिन्हें हम कई बार प्यार समझ बैठते हैं लेकिन इसका आकर्षण समय के साथ साथ कम होता जाता है,क्योकि इसमें कोई ना कोई मॉंग या चाहत छिपी होती है या छणिक आकर्षण के कारण हम एक दूसरे के समीप आ गए हैं, जो आवश्यकता पूरी होने पर या आकर्षण कम होने पर स्वतः ही हमारा मन इससे दूर होता जायेगा I जबकि माँ का बच्चे से प्यार ,स्वयं का स्वयं से प्यार या बच्चे का माँ से प्यार निश्वार्थ होता है ,ये प्यार किया नहीं जाता अपने आप हो जाता है और जैसे जैसे समय बीतता जाता है प्यार बढ़ता जाता है,कम होने का सवाल ही नहीं है , इसे हम प्यार में पड़ना ( FALL IN LOVE ) भी कहते हैं I
        सच्चे प्यार में देने की , समर्पण की  भावना होती है ; स्वार्थ ( SHELFISHNESS  ) की कोई जगह नहीं होती I सच्चे प्यार में हम कभी ऊबते (BORED) नहीं हैं ; क्योकि वहां दोनों और हम ही होते हैं दोनों एक जान - एक आत्मा I यहां दोनों का ध्यान एक-दूसरे पर पूर्ण होता हैं ,लगता है जैसे दोनों एक की हैं ,दोनों की भावनायें एक ही हैं l प्यार का रिश्ता जरुरत पर आधारित नहीं होता ,ये ख़ुशी की अभिव्यक्ति पर आधारित होता है l इसमें छणिक सुख की कोई कामना नहीं होती ,क्योंकि दोनों और हम ; हमारे को ही पाते हैं ; एक जान-एक शरीर l सच्चे प्यार में क्षमा का भाव होगा; ना कि दण्डित करने का या कोई चोट पहुँचाने का l

        सच्चा प्यार हमें शक्ति व् हिम्मत तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है I प्यार नाम है - विश्वाश का , समर्पण का ,एक दूसरे में खो जाने का l  प्रेम में देने ही देने का भाव होगा ,लेने का कभी नहीं l सच्चे प्यार की कीमत अमूल्य है ; जिसका अहसास उसके खोने पर ही हो सकता है l 

मुझे आपके अमूल्य सुझाव व् सहयोग का इंतज़ार रहेगा i कृपया मेरे प्रयास में सहयोग दें  l



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